छत्तीसगढ में आरक्षण पर संग्राम, बीजेपी ने प्रदेश सरकार पर साधा निशाना, कहा- आदिवासियों को छलने का काम कर रही कांग्रेस सरकार

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The Sootr CG
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छत्तीसगढ में आरक्षण पर संग्राम, बीजेपी ने  प्रदेश सरकार पर साधा निशाना, कहा- आदिवासियों को छलने का काम कर रही कांग्रेस सरकार

RAIPUR. छत्तीसगढ़ में एक बार फिर आरक्षण का सियासी विरोध तेज हो गया है। बीजेपी ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आरक्षण मामले में आदिवासियों को छलने का कांग्रेस काम कर रही है। दरअसल, भूपेश सरकार ने केपी खांडे को राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बनाया है। इस फैसले पर भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। 29 अक्टूबर को मीडिया से चर्चा के दौरान वरिष्ठ बीजेपी नेता विक्रम उसेंडी, केदार कश्यप, लता उसेंडी और विकास मरकाम ने कहा कि इन सबके पीछे सीएम भूपेश बघेल की मिलीभगत और षड्यंत्र से आदिवासियों को छलने और जातियों को आपस में लड़ाने का गंदा खेल खेला जा रहा है। 





'खांडे को सरकार ने दिया इनाम'





भाजपा नेताओं ने कहा कि पिछले दिनों आदिवासियों का 32% आरक्षण भूपेश सरकार की ऐच्छिक नाकामी के परिणाम स्वरूप माननीय उच्च न्यायालय से अपास्त घोषित हुआ। यह सभी जानते है कि 32% आरक्षण को निरस्त घोषित करने के पक्ष में, पैरोकारी करने वाले एक मुख्य पक्षकार केपी खांडे हैं। 32% आरक्षण को निरस्त घोषित कराने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसका इनाम देते हुए भूपेश सरकार ने उन्हें राज्य अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। 





प्रदेश सरकार को लिया आड़े हाथ





भाजपा नेताओं ने भूपेश सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा भूपेश जी एक तरफ आप आदिवासी हितैषी और पक्षधर होने का ढोंग करते हो, दूसरी तरफ आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार छीनने के लिए जिम्मेदार लोगों को आप पुरस्कृत करते हैं। आदिवासी समाज को ठगते हुए, झांसा देते हुए आपको शर्म आनी चाहिए।





फूट डालो राज करो की नीति उजागर 





भाजपा नेताओं ने कहा कि यह आदिवासियों के गाल पर करारा तमाचा नहीं तो और क्या है? ये भूपेश सरकार की दोहरी और दोगली नीति उदाहरण और प्रमाण नहीं तो क्या है? प्रदेश में अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति को लड़ाकर अंग्रेजों वाली तरकीबें अपनाना बंद कीजिए। फूट डालो राज करो की आपकी नीति उजागर हो चुकी है। उन्होंने कहा कि इससे पहले भूपेश बघेल सरकार ने ओबीसी समाज को 27% आरक्षण देने का ड्रामा किया। बाद में अपने ही करीबी कुणाल शुक्ला को माननीय हाईकोर्ट में खड़ा करके उस पर स्टे लगवा दिया, और फिर बाद में कुणाल शुक्ला को भूपेश सरकार ने पुरस्कार देते हुए कबीर शोध पीठ का अध्यक्ष नियुक्त कर ओबीसी समाज के गाल पर करारा तमाचा मारा था।



 



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